क्या कभी भारतीय सैनिक चीन में बीजिंग शहर के अंदर तक पहुंच सके हैं. इतिहास में एक बार ऐसा मौका भी आया था जब भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश सेना को बीजिंग में पहुंचाया था. इतिहास का यह दौर 19वीं सदी के अंतिम साल और बीसवीं सदी के शुरू का समय था. उस दौर में बॉक्सर विद्रोह कुचलने के लिए दुनिया के आठ देशों की सेना चीन गई थी और ब्रिटिश सेना में भारत के राजस्थानी और पंजाबी सिख सैनिक भारी तादाद में गए थे. उन्होंने ना केवल वहां के कुछ इलाकों को जीतने में सफलता हासिल की थी, बल्कि अंग्रेज सैनिकों के अत्याचारों का विरोध भी किया था.
19वीं सदी के अंत का चीन
19वीं सदी के अंत में यूरोपीय देशों ने चीन को आपस में बांट लिया था और ईसाई प्रचारकों ने कई चीनियों का धर्म परिवर्तन भी कर दिया था. उन मिशिनियरों पर चीन की संस्कृति नष्ट करने और किसानों की संम्पत्ति छीनने के भी आरोप लगे. उस दौर में चीन में यूरोपीय समान अधिक नहीं बिकता था जबकि यूरोपीय लोगों को चीन से बहुत सारी चीजें खरीदनी पड़ती थी.
धीरे धीरे पनपता विरोध
इस संतुलन को अपनी तरफ करने के लिए यूरोपीय ताकतों ने चीनियों को अफीम बेचनी शुरू कर दी थी. इसका चीन के लोगों ने विरोध किया. कई जगह अफीम के व्यापार की पाबंदी लगा दी गई. जिसका यूरोपीय शक्तियों ने विरोध किया अफीम के व्यापार पर पाबंदी पर ही रोक लगा दी. हालात हिंसक संघर्ष की अवस्था में पहुंच गए
बॉक्सर विद्रोह की शुरुआत
1898 में चीन में इसी यूरोपीय साम्राज्यवाद और ईसाई धर्म के विस्तार के विरुद्ध एक हिंसक आंदोलन शुरू हुआ जो बॉक्सर विद्रोह के नाम से जाना गाय. इसका नेतृत्व चीन के यीहेतुआन नाम के एक धार्मिक संगठन ने किया था जिसकी ओर से लड़ने वाले चीनी मार्शल आर्ट्स में निपुण हुआ करते थे. उस समय यूरोपीय लोग इस कला को चीनी मुक्केबाजी कहा करते थे इसलिए विद्रोहियों को भी मुक्केबाज विद्रोही या बॉक्सर रेबिलियन कहा गया था.
बॉक्सर विद्रोह में चीन के स्थानीय लोगों के खिलाफ दुनिया के कई देश खड़े हो गए थे. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
ईसाई पादरियों की हत्या से सनसनी
1899 में यह विद्रोह सुर्खियों में या जब उत्तरी चीन में कई ईसाई मिशनरीज की हत्या से यूरोपीय देशों में सनसनी फैल गई और इस विद्रोह को कुचलने के लिए 8 यूरोपीय देशों ने जिम्मा लिया और एक संयुक्त सेना भेजने का फैसला किया. इसमें ब्रिटिश सेना की ओर से 23 हजार राजस्थानी सैनिक गए थे और साथ ही सिख सैनिकों का भी एक दल गया था.
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बाहरी देशों में एकता
जल्दी ही चीन का शासक वर्ग भी विद्रोहियों के साथ हो गया और युद्ध की स्थिति बन गई. लेकिन उसका रवैया दोनों ही तरफ की ओर ढुलमुल ही रहा. अंततः यूरोपीय ताकतों में ऑस्ट्रिया – हंगरी, जर्मनी, फ्रांस, इटली, रूस, ब्रिटेन, ने अमेरिका और जापान को साथ मिला कर सहयोगी राष्ट्रों का गुट बनाकर विद्रोह को कुचलने का फैसला किया. इसमें हजारों सैनिकों ने हिस्सा लिया जिसमें ब्रिटिश सेना की ओर से खासी संख्या में भारत के सैनिक शामिल थे.

बॉक्सर विद्रोह को दबाने के लिए सिख बटालियन भी भेजी गई थी जो करीब 13 महीने के आसपास चीन में रही थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)
भारतीय सैनिकों की सफलता
भारतीय सैनिकों में राजस्थान से इदार के सर प्रताप सिंह के जोधपुर लांसर्स और बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह की बीकानेर गंगा रिसाला के सैनिकों को चीन भेजी गई जो एक महीने तक वहां रुकी. भारतीय सैनिकों ने पॉन्टिंगफु और पिटांग पर भी कब्जा करने में सफलता हासिल की. युद्ध में बॉक्सर विद्रोह को कुचल दिया गया और चीन पर भारी जुर्माना लगाते हुए ऐसी शर्तें थोपी गईं कि एक दशक के अंदर ही किंग वंश का शासन खत्म हो गया था.
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लेकिन इस पूरे मामले में भारतीय सैनिकों के नाम इतिहास में खास तौर पर दर्ज हो गया. सैनिकों को चीन में सफलता मिली तो उन्होंने यूरोपीय सैनिकों के अत्याचारों का विरोध भी किया. भारत लौटने पर उनका भव्य स्वागत भी हुआ. लेकिन बॉक्सर विद्रोह और उसके बाद बॉक्स समझौता चीन के इतिहास लिए एक बहुत ही बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ जिसमें भारतीय सैनिकों की दास्तान छिप कर रह गई.
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FIRST PUBLISHED : July 09, 2023, 16:09 IST